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Offbeat: भारत के इस मंदिर में प्रसाद के रूप में दिया जाता है सोना चांदी! जानकर होगी हैरानी

 

भारत में देवी-देवताओं के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। वे अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसे मंदिरों में भक्त अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए उमड़ते हैं। मनचाहे देवता की पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। कई जगहों पर प्रसाद के रूप में लड्डू और शीरा जैसे खाद्य पदार्थ परोसे जाते हैं। लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जहां के प्रसाद के बारे में सुनकर आप हैरान रह जाएंगे।

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में एक अनोखा मंदिर है जहां सोने और चांदी के रूप में प्रसाद बांटा जाता है। हाँ! आपने जो सुना वह सच है। महालक्ष्मी की पूजा के बाद दर्शन के लिए आने वाले भक्तों को सोने चांदी के आभूषण प्रसाद के रूप में दिए जाते हैं। इसके साथ ही यहां आने वाले लोग महालक्ष्मी के मंदिर में सोना-चांदी आदि भी चढ़ाते हैं और जीवन में सफलता की कामना करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से साल के अंत में उनकी आमदनी दोगुनी हो जाती है।

इस अद्भुत मंदिर के कपाट धनत्रयोदशी के दिन खुलते हैं

मध्य प्रदेश के रतलाम में स्थित माता महालक्ष्मी का यह मंदिर धनत्रयोदशी के शुभ दिन ही भक्तों के लिए खोला जाता है। इसके बाद यहां 5 दिनों तक माता महालक्ष्मी की विशेष रूप से पूजा की जाती है और दिवाली का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि जो भी भक्त माता महालक्ष्मी का श्रृंगार करने के लिए घर से आभूषण लाता है, उसकी आय दोगुनी हो जाती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

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दिवाली के दौरान मंदिर की विशेष सजावट

दिवाली के दौरान मंदिर को इस तरह से सजाया जाता है कि दर्शन के लिए आने वाले भक्तों का मुंह भी खुला रह जाता है। यहां पूरे मंदिर को नोटों और गहनों से सजाया गया है। जिसकी कीमत 100 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। मंदिर की साज-सज्जा के लिए भक्त इतने पैसे दान करते हैं। इसके बाद उन्हें वापस भी कर दिया जाता है। इस रकम की उन्हें विधिवत रसीद दी जाती है और भाऊबीजी के दिन जब टोकन दिया जाता है तो पैसे और गहने भी वापस कर दिए जाते हैं।

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प्रसाद में सोने-चांदी के आभूषण नहीं दिए जाते हैं

इस मंदिर की खास बात यह है कि दीपावली के त्योहार में भक्तों को प्रसाद के रूप में गहने और नकदी दी जाती है। इस प्रसाद को लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं। हालांकि, भक्त यहां प्राप्त आभूषणों को खर्च नहीं करते हैं बल्कि उन्हें खजाने में रखते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से चौगुनी तरक्की होती है।